क्या ऊर्जा मंत्री के क्षेत्र में फिर पावर में आ रही है भाजपा

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ऊर्जा मंत्री सुखराम चौधरी के निर्वाचन क्षेत्र पांवटा साहिब में क्या भाजपा पावर में रहेगी, इस पर सबकी निगाहें टिकी है। जयराम सरकार में कैबिनेट मंत्री सुखराम चौधरी इस सीट से छठी बार भाजपा टिकट के साथ मैदान में है। चौधरी ने 1998 में हार के साथ शुरुआत की थी लेकिन इसके बाद 2003 और 2007 में वे जीते। तब इस सीट का नाम पांवटा दून था, फिर 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट पांवटा साहिब हो गयी। 2012  में उन्हें फिर हार का सामना करना पड़ा लेकिन 2017 में वे फिर जीते। इसके बाद वर्ष 2020 में हुए जयराम कैबिनेट के विस्तार में उन्हें मंत्री पद भी मिल गया। जाहिर है मंत्री पद के बाद लोगों की  आशाएं भी उनसे बढ़ी है और इस बार इस सीट पर उनकी राह मुश्किल जरूर है। उधर, कांग्रेस ने फिर इस सीट से किरनेश जंग को मैदान में उतारा है। किरनेश पहली बार 2003 में लोकतान्त्रिक मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए थे। फिर 2007  में कांग्रेस के टिकट पर हारे। 2012 में कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया लेकिन वे निर्दलीय चुनाव जीतने में कामयाब रहे। पर 2017 में कांग्रेस टिकट पर फिर हार गए। ऐसे में इस बार कांग्रेस से उनके टिकट को लेकर संशय बना हुआ था लेकिन आखिरकार उन्हें पार्टी ने टिकट दे दिया। ये किरनेश जंग का पांचवा चुनाव है और उनके खाते में सिर्फ एक जीत है। स्वाभाविक है ऐसे में उनके लिए इस बार जीत बेहद जरूरी है।     

 इस सीट पर आम आदमी के प्रत्याशी मनीष ठाकुर का जिक्र भी जरूरी है। मनीष युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे है और कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए है। अब मनीष के होने से इस चुनाव में किसको कितना फर्क पड़ा है, ये विशेलषण का विषय जरूर है। अगर मनीष कांग्रेस के वोट में ज्यादा सेंध लगा गए है तो किरनेश की मुश्किलें बढ़ सकती है। निसंदेह मनीष ने भी दमखम से चुनाव लड़ा है और यहाँ उलटफेर की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महामंत्री मनीष तोमर, रोशन लाल चौधरी और सुनील कुमार चौधरी भी चुनावी मैदान में है। दिलचस्प बात ये है कि इस सीट से 9 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा है। अब बात करते है ग्राउंड रियलिटी की। इस निर्वाचन क्षेत्र में बाहती बिरादरी का खासा प्रभाव है। सुखराम चौधरी भी इसी बिरादरी से आते है। पर इस बार इसी बिरादरी से रोशन लाल चौधरी और  सुनील कुमार चौधरी भी चुनावी मैदान में है और अगर ये सुखराम के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब रहे है, तो यहाँ ऊर्जा मंत्री के लिए मुश्किल हो सकती है। भाजपा के पूर्व महामंत्री का चुनाव लड़ना भी उनके लिए चिंता का विषय जरूर रहा है। इस पर एंटी इंकम्बैंसी और ओपीएस जैसे मुद्दों का असर भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बहरहाल पांवटा साहिब निर्वाचन क्षेत्र में मुकाबला कड़ा है और इस सीट पर कौन जीतता है , इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।