देश में टिटनेस और डिप्थीरिया का अब एक ही इंजेक्शन लगेगा। इसके लिए केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआई) कसौली ने वैक्सीन ईजाद की है। अब इसके क्लीनिकल ट्रायल ने भी पूरे करने में भी सफलता पा ली है। ट्रायल में वैक्सीन बीमारी के लिए एंटीबॉडी बनाने में असरदार सिद्ध हुई है। कुछ दिनों में अब वैक्सीन सरकारी स्तर पर अस्पतालों में उपलब्ध हो जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. जगत प्रकाश नड्डा इस वैक्सीन का शुभारंभ करेंगे। इसके बाद वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी। बता दें कि वैक्सीन पर सीआरआई में वर्ष 2019 से शोध कार्य किया जा रहा था।
पहले दोनों बीमारियों के लिए होती थी अलग-अलग वैक्सीन
इससे पहले दोनों बीमारियों में अलग-अलग वैक्सीन लगाई जाती थी। इससे बच्चों में कई प्रकार की दिक्कतें भी देखने को मिलती थीं। आधुनिकता के दौरान में टिटनेस और डिप्थीरिया वैक्सीन का एक ही इंजेक्शन तैयार करने के लिए संस्थान में वैज्ञानिकों ने दिनरात शोध कार्य किया। इस बीच, कोरोना काल के कारण वैक्सीन शोध कार्य में कुछ दिक्कतें आई, लेकिन संस्थान ने इन दिक्कतों को लांघ कर अब वैक्सीन तैयार कर ली है।
क्या है टिटनेस और डिप्थीरिया
किसी औजार से कटने या छिलने पर टिटनेस का टीका लगाना जरूरी होता है। गलघोंटू रोग के लिए डिप्थीरिया का टीका लगता है। गलघोंटू एक संक्रामक रोग है जो 2 से 10 साल तक बच्चों को अधिक होता है। हालांकि, सभी आयु वर्ग के लोगों को ये रोग हो सकता है। ये रोग प्राय: गले में होता है और टॉन्सिल भी होते हैं। इसके बैक्टीरिया टॉन्सिल व श्वास नली को सबसे ज्यादा संक्रमित करते हैं। सांस लेने में दिक्कत, गर्दन में सूजन, बुखार और खांसी आदि इसके लक्षण हैं।
कई जीवन रक्षक दवाएं बना चुका है सीआरआई
केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली वैक्सीन निर्माण में न केवल भारत बल्कि दुनियाभर में अग्रणी है। तीन मई 1905 को स्थापित इस संस्थान की स्थापना चिकित्सा और जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुसंधान, वैक्सीन, सीरा निर्माण और जन स्वास्थ्य समस्याओं के लिए कार्य करने के उद्देश्य से की गई है। सीआरआई ने कई प्रकार की दवाएं तैयार कर दी हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान घायल सैनिकों के इलाज में भी इस संस्थान ने अहम भूमिका निभाई थी। यह डीपीटी का टीका बनाने वाला पहला केंद्रीय सरकारी संस्थान है।
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