बारात लेकर पहुंची दुल्हन, दूल्हे के घर में ही निभाई सारी रस्में

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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के दुर्गम उपमंडल शिलाई के कुसेनू गांव में उत्तराखंड की चकराता तहसील के जगनाथ गांव से दुल्हन 100 बरातियों के साथ पहुंची। सारे रीति रिवाज व रस्में दूल्हे के घर में हीं निभाई गईं। जिले के ट्रांसगिरि इलाके में इस परंपरा को झाजड़ा के नाम से जाना जाता है, जो आज भी निभाई जा रही है। हालांकि, इस क्षेत्र में अब ये परंपरा काफी कम हो गई। कुछेक क्षेत्रों में अब भी इस परंपरा के तहत विवाह हो रहे हैं। 

बता दें कि उत्तराखंड का चकराता जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ऐसी परंपरा कई दशकों से प्रचलित है। वहीं, इस तरह की परंपराओं को लेकर जिला सिरमौर के ट्रांसगिरि इलाके को भी जनजातीय क्षेत्र घोषित करने की मांग उठती रही है। केंद्र सरकार ने हाटी समुदाय को जनजाति तो घोषित किया है, लेकिन अभी मामला कैबिनेट में है। शिलाई क्षेत्र का उत्तरांखड जौनसार बाबर क्षेत्र के लोगों के साथ भाईचारे का नाता है।

लिहाजा, दोनों क्षेत्र आपस में रिश्तेदारी भी जोड़ते आए हैं। इस परंपरा का निर्वहन करते हुए उत्तराखंड से दुल्हन सुमन जोशी बरात लेकर बालीकोटी पंचायत के कुसेनू गांव में दूल्हे राजेंद्र सिंह के घर पहुंची। जहां उनका स्वागत किया गया। खास बात ये रही कि ये शादी दहेज लिए बगैर हुई। परंपरा ये है कि यदि दूल्हा दुल्हन के घर बरात लेकर जाता तो वधु पक्ष की ओर से दहेज दिया जाता। झाजड़ा के रूप में हुई इस शादी में किसी भी प्रकार के दहेज का लेन-देन नहीं हुआ।
दूल्हे के पिता कुंभराम ने बताया कि झाजड़ा  परंपरा में न तो दूल्हा बारात लेकर जाता है, न दुल्हन के घर में फेरे होते हैं। इस दौरान नशे पर पूरी तरह पाबंदी रही। शादी में शराब तक नहीं परोसी गई। वहीं, केंद्रीय हाटी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने बताया कि यह जनजातीय क्षेत्र की परंपरा है जो हाटी समुदाय की एथनोग्राफिक रिपोर्ट में लिखी गई है।