हिमाचल प्रदेश ड्रग मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन ने साइकोट्रोपिक दवाओं के निर्माण और अवैध आपूर्ति के मामले में बॉयोजेनेटिक ड्रग्स प्राइवेट लिमिटेड और स्माइलैक्स फार्मा की चल रही सरकारी जांच का सर्मथन किया है। एसोसिएशन ने कहा कि हिमाचल का दवा उद्योग विश्व में अपनी गुणवत्ता पूर्ण दवा निर्माण के लिए जाना जाता है। यही नहीं, कोविड के समय भी दवा उद्योगों ने मानवता के लिए कार्य किया और आज भी विपरीत परिस्थितियों में अमूल्य दवाइयों के विनिर्माण में सलंग्न है, लेकिन इसी बीच सामने आ रहे मामले स्तबध करने वाले है। हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एचडीएमए) के अध्यक्ष डाक्टर राजेश गुप्ता, महासचिव मुनीश ठाकुर व प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि बॉयोजेनेटिक ड्रग्स प्राइवेट लिमिटेड और स्माइलेक्स फार्मा का प्रबंधन अपने आप को जब तक नशा बेचने के गंभीर आरोपों से दोष मुक्त नहीं कर लेता तब तक एचडीएमए में इन दोनों कंपनियों की प्राथमिक सदस्यता निलंबित रहेगी।
उन्होंने हिमाचल के दवा निर्माताओं से आग्रह किया कि वह अपने रिकार्ड सही रखे और समय-समय पर उसे ड्रग विभाग और नारकोटिक्स विभाग के रेगुलेट्र्स से सत्यापित भी करवाते रहे। हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डाक्टर राजेश गुप्ता, महासचिव मुनीश ठाकुर व दप्रवक्ता संजय शर्मा ने यहां जारी प्रेस बयान में कहा कि मेसर्स बॉयोजेनेटिक ड्रग्स प्राइवेट लिमिटेड , स्माइलैक्स फार्मा कंपनियों पर की गई कार्रवाईयों का एसोसिएशन ने विस्तृत अध्ययन किया है और ड्रग कंट्रोलर मनीष कपूर से भी इस संदर्भ में जानकारी हासिल की है और दोनों कंपनियों के प्रोमोटर से भी बात की है। जिसके बाद जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक दोनों कंपनियां सरकार के द्वारा अधिकृत नारकोटिक्स कोटे में दवाई निर्माण के लिए भारत सरकार और हिमाचल प्रदेश सरकार से पंजीकृत थी । इसके अलावा दोनों कंपनियों के पास राज्य दवा नियामक से जरूरी अप्रूवल भी है।
कोडीन आधारित दवा उत्पादों पर लगे बैन
हिमाचल ड्रग मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष संजय शर्मा ने प्रदेश में कोडीन आधारित दवा उत्पादों के निर्माण पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाए जाने की मांग की है। श्री शर्मा ने कहा कि कोडीन एक ओपिओइड आधारित एनाल्जेसिक है, यह दवाएं मौजूदा नशीली दवाओं के दुरुपयोग के लिए उपयोग किए जाने वाले उत्पादों में से एक बन गई है। एशिया का फार्मा हब कहे जाने वाले हिमाचल में कोडिन आधारित दवा उत्पादों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए, क्रमबद्ध ढंग से उठाए गए कदमों से इसे भविष्य में प्रचलन से पूरी तरह बाहर किया जा सकता है।