हमीरपुर उप चुनाव में दांव पर होगी सीएम सुक्खू व सांसद अनुराग की प्रतिष्ठा

Spread the love

हिमाचल की तीन सीटों पर होने वाले उपचुनाव में एक बार फिर कांग्रेस व भाजपा की प्रतिष्ठा दांव पर रहेगी।  मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के गृह जिला हमीरपुर को उप चुनाव की सबसे हॉट सीट माना जा रहा हैं। यहां कांग्रेस उम्मीदवार की जीत के लिए मुख्यमंत्री स्वयं पसीना बहाएंगे तो दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवार की जीत का जिम्मा पांचवी बार लोकसभा सांसद बने अनुराग ठाकुर पर रहेगा। हालांकि इस उप चुनाव में कांग्रेस किसी कारण वश जीत से दूर रहती है तो भी सरकार बहुमत में रहेगी, लेकिन गृह जिला होने के चलते मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा का सवाल जरूर बनेगी। बड़सर में इंद्रदत्त लखनपाल की जीत से मुख्यमंत्री की जो फजीहत हुई है, उस दाग को धोने के लिए कांग्रेस व मुख्यमंत्री इस सीट को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगे। दूसरी तरफ सुजानपुर में राजेंद्र राणा की हार के बाद भाजपा हाईकमान सकते में नजर आ रही है। राजनीतिक विद्वानों के तर्क पर गौर करें तो अनुराग ठाकुर को इस बार अभी तक केंद्रीय मंत्री मंडल में जगह न मिलना भी राजेंद्र राणा की हार को कारण माना जा रहा हैं।

बताया जा रहा कि भाजपा पिछले उप चुनाव की तर्ज पर इन उप चुनाव में भी उन्हीं नेताओं को टिकट देने वाली है, जो अपनी विधायकी छोड़ भाजपा में शामिल हुए हैं। यदि भाजपा इस कार्ड को खेलती है तो निश्चित तौर पर ही आशीष शर्मा प्रत्याशी होंगे। आशीष शर्मा को जिताने का सारा दारोमदार भी अनुराग ठाकुर पर रहेगा और यदि इस सीट पर सुजानपुर की तरह भाजपा पिछड़ती है तो उसकी क़ीमत भी अनुराग ठाकुर को ही चुकानी होगी।

      यदि अनुराग इस सीट को भाजपा की झोली में डालने में कामयाब होते हैं तो शायद केंद्र सरकार उनको किसी बड़े पद से नवाजने की तरजीह दे सकती है। ऐसे में मुख्यमंत्री व सांसद अनुराग की प्रतिष्ठा हमीरपुर उपचुनाव के परिणाम पर टिकी हुई है। लेकिन इस बीच दोनों ही पार्टियां चुनाव में सशक्त प्रत्याशी उतारने की जुगत में लग चुकी है। कांग्रेस और भाजपा किसे अपना प्रत्याशी बनाती है तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन एक बात तो तय है कि हमीरपुर उपचुनाव में भी दोनों तरफ से ही भीतरघात होने की पूरी संभावना है।

      कांग्रेस तो हमीरपुर कमेटी को भंग करने तक का ऐलान कर चुकी है ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस इस बार बिना संगठन के ही उप चुनाव में उतरेगी या फिर चुनावों से पहले नए लोगों को संगठन में तरजीह दी जाएगी, यह सवाल भी कांग्रेस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।