हिमाचल के बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के वैज्ञानिकों ने सेब की एक स्वदेशी किस्म बड़ म्यूटेशन की पहचान की है। खास बात है कि सेब की यह किस्म सामान्य किस्मों से दो माह पहले फसल देगी। इसका रंग भी सुर्ख लाल होगा। इस किस्म के सेब में रंग आने के लिए धूप की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी और धुंध-कम धूप वाले क्षेत्रों में आसानी से तैयार हो सकेगा। मौजूदा समय में जो सेब तैयार होता है, उस पर कम धूप और धुंध का काफी प्रभाव है। नई किस्म पर नौणी विवि चार साल से शोध कर रहा है।
नौणी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि जल्दी तैयार होने और सुर्ख लाल रंग के चलते सेब की बाजार में भी अधिक मांग रहेगी। प्रो. चंदेल ने बताया कि विवि के शिमला के मशोबरा स्थित क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के सह निदेशक डॉ. दिनेश ठाकुर की अध्यक्षता में सेब की नई किस्में विकसित करने पर शोध चल रहा है। इसी क्रम में डिलीशियस किस्मों में होने वाले कलिका उत्परिवर्तन (बड म्यूटेशन) पर शोध चल रहा है। इसमें प्राकृतिक उत्परिवर्तन से चयनित स्थायी अर्ली कलरिंग स्ट्रेन का विकास किया गया। इसे 1800 मीटर की ऊंचाई पर उगाई जाने वाली 35 साल की आयु वाले वांस डिलीशियस किस्म से चयनित किया गया।
वांस डिलीशियस में कलर आने में लगता है समय
वांस डिलीशियस किस्म की तुलना में अगली कलरिंग स्ट्रेन की खासियत है कि इसमें फल दो महीने पहले ही पूर्ण रूप से गहरे लाल रंग में विकसित हो जाता है। जबकि इसकी मदर किस्म वांस डिलीशियस की सतह पर धारदार रंग विकसित होता है। इसमें सामान्य किस्मों से पहले ही फूल आ जाते हैं। अभी प्रदेश में जो सेब पैदा होता है, उसमें फ्लावरिंग के बाद फसल तैयार होने में करीब 90 से 120 दिन लगते हैं। बताया कि इस किस्म के व्यावसायिक बागवानी में सफल होने की उम्मीद है। वजह यह है कि इस किस्म का चयन पहले से शीतोष्ण जलवायु में अनुकूलित किस्म से किया गया है। विकसित की जा रही नई किस्म में वातावरण बदलाव को सहन करने की भी क्षमता होगी।
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