बिलासपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ प्रवीण कुमार ने बताया कि हिमोफीलिया ऐसा रोग है जिसमें रक्त का थक्का सामान्य रूप से नहीं बनता जब किसी व्यक्ति में खून ठीक से नहीं जमता तो चोट लगने के बाद शरीर के बाहर या अंदर बहुत ज्यादा खून बहता है। इस रोग से डॉक्टर की सलाह लेकर ही कुछ लाभ प्राप्त किया जा सकता है लेकिन इसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह रोग एक अनुवांशिक रोग है, इस बीमारी का कारण एक रकत प्रोटीन की कमी के कारण होता है जिसे क्लोटिंग फैक्टर कहा जाता है। उन्होंने कहा कि इस फैक्टर्स की कमी से जब खून बहता है तो थोड़ी देर में थक्का जमकर बहने से रोक देता है। यह रोग महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में अधिक होता है। इस प्रकार के रोगी को अगर कोई शारीरिक नुकसान पहुंचे तो उसकी प्राथमिकता के आधार पर डॉक्टरी जांच होनी चाहिए। उन्होंने बताया कि अगर किसी रोगी में कोई बढ़े या गहरे घाव जोड़ों का दर्द व सूजन बिना किसी वजह से खून बहना, पेशाब या मल में खून आने के लक्ष्य दिखाए दें तो डॉक्टर से जांच जरूर करवाएं। उन्होंने बताया कि हर 10,000 में एक व्यक्ति हीमोफीलिया के साथ जन्म लेता है इसलिए अनुमानित तौर पर भारत में करीब 1,00,000 लोग हिमोफीलिया के शिकार हैं। उन्होंने बताया कि जब किसी रोगी व्यक्ति में खून बहता है तो खून को रोकने के लिए मरीज को फैक्टर्स 8 और 9 चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी का इलाज उसके स्टेज पर और उसके प्रकार पर निर्भर करता है। उन्होंने बताया कि अधिक गंभीर स्थिति में हीमोफीलिया से जुड़े क्लॉटिंग फैक्टर को बदलना पड़ता है जिसके लिए एक नली का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें नली की नसों के अंदर डाला जाता है जिसे रिप्लेसमेंट थेरेपी के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार हीमोफीलिया के मरीजों का इलाज किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इन रोगों की जानकारी लोगों को होना बहुत आवश्यक है और इस प्रकार के रोगियों की तुरंत जांच व इलाज करवाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।