रेहड़ी फड़ी तयबजारी यूनियन सम्बन्धित सीटू का तीसरा राज्य सम्मेलन सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में तेईस सदस्यीय कमेटी चुनी गई। राकेश कुमार को अध्यक्ष,सुरेन्द्र कुमार को महासचिव,विपन कुमार को कोषाध्यक्ष,सुरेंद्र बिट्टू ,ब्रह्मदास,संजय कुमार को उपाध्यक्ष,नोरसंग शेरपा,हीरा लाल जोशी को सचिव,श्याम लाल,दर्शन लाल,मनोज कुमार,तिरमल,दीपक,धनंजय,घनश्याम,रमेश,पासंग वाइवा,सुरेंद्र कुमार को कमेटी सदस्य चुना गया। सम्मेलन में सीटू राष्ट्रीय सचिव डॉ कश्मीर ठाकुर,प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा,उपाध्यक्ष जगत राम,राज्य सचिव जोगिंद्र कुमार,राज्य कमेटी सदस्य सुरेश राठौर,सीटू जिलाध्यक्ष प्रताप राणा,यूनियन अध्यक्ष राकेश कुमार,महासचिव सुरेन्द्र कुमार सहित सौ से ज़्यादा प्रतिनिधि शामिल रहे। सम्मेलन का उद्घाटन डॉ कश्मीर ठाकुर व समापन विजेंद्र मेहरा ने किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार लगातार मजदूरों के कानूनों पर हमले कर रही है। इसी कड़ी में मोदी सरकार ने मजदूरों के चबालिस कानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड बनाने,सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश व निजीकरण के निर्णय लिए हैं। इस क्रम में वर्ष 2014 के रेहड़ी फड़ी तयबजारी के कानून को भी खत्म करने की साज़िश रची जा चुकी है। कोरोना काल में जहां दो वर्ष तक रेहड़ी फड़ी तयबजारी का कार्य करने वाले पूरी तरह बर्बाद हो गए वहीं दूसरी ओर उनके कानून पर हमला करके केंद्र सरकार ने अपनी तानाशाही प्रवृत्ति को घोषित कर दिया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार को चेताया है कि अगर शिमला स्थित आजीविका भवन की दुकानों को रेहड़ी फड़ी तयबजारी वालों के अलावा किसी अन्य को वितरित किया गया तो यूनियन आंदोलन तेज करेगी।
उन्होंने हिमाचल प्रदेश की सभी नगर पंचायतों,नगर परिषदों व नगर निगमों में स्ट्रीट वेंडरज़ एक्ट को लागू करने व टाउन वेंडिंग कमेटियां बनाने की मांग की है। उन्होंने प्रदेशभर में वेंडिंग ज़ोन बनाने की मांग की है। उन्होंने तयबजारी को उजाड़ने के बजाए वर्ष 2014 के कानून अनुसार बसाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता,मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है। यह साबित हो गया है कि यह सरकार मजदूर,कर्मचारी व जनता विरोधी है व लगातार गरीब व मध्यम वर्ग के खिलाफ कार्य कर रही है। सरकार की पूँजीपतिपरस्त नीतियों से अस्सी करोड़ से ज़्यादा मजदूर व आम जनता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है। सरकार फैक्टरी मजदूरों के लिए बारह घण्टे काम करने का आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है। आंगनबाड़ी,आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साज़िश की जा रही है। उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स,ठेका,दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है। केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है। हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है। सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हज़ार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है।