जन्मदिन विशेष: LIC सहायक से हिमाचल के CM तक का सफर, सड़क वाले मुख्यमंत्री “धूमल”

Spread the love

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री  प्रेम कुमार धूमल आज 78 वर्ष के हो गए हैं। प्रदेश की जनता धूमल को सड़क वाले मुख्यमंत्री के तौर पर भी जानती है। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिला से संबंध रखने वाले प्रेम कुमार धूमल हिमाचल में भाजपा की रीढ़ की हड्डी रहे हैं। धूमल से हिमाचल की राजनीति का एक बड़ा अध्याय जुड़ा है।

शायद ही नई पीढ़ी को ये पता होगा कि भारतीय जीवन बीमा निगम में सहायक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का जन्म 10 अप्रैल, 1944 को हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में हुआ था। प्रेम कुमार धूमल ने पंजाब यूनिवर्सिटी के अंदर आने वाले दोआबा कॉलेज (जालंधर) से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। जिसके तुरंत बाद ही वो एलआईसी से जुड़ गए थे। क्योंकि वो किसी पर भी निर्भर नहीं रहना चाहते थे। लेकिन धूमल ने नौकरी के लिये पढ़ाई नहीं छोड़ी। भारतीय जीवन बीमा निगम में काम करने के साथ-साथ प्रेम कुमार धूमल ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री भी प्राप्त कर ली। इसके बाद उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी इवनिंग कॉलेज और दोआबा कॉलेज, जालंधर में अध्यापन कार्य करना शुरू कर दिया।

इनके परिवार की बात करें तो परिवार में पत्नी शीला धूमल और उनके दो पुत्र हैं। हालांकि उनके दोनों पुत्रों की पहचान विश्व पटल पर है। लेकिन इस लेख में उनका जिक्र नहीं किया जाएगा। क्योंकि यहां हम केवल प्रो. धूमल की बात कर रहे हैं। प्रेम कुमार धूमल जमीन से जुड़े हुए नेता हैं। वह अपने नागरिकों के कल्याण के लिए हमेशा प्रयासरत रहते हैं।

हिमाचल भाजपा में एक समय वर्तमान में वरिष्ठ नेता शांता कुमार का सिक्का चलता था। नरेन्द्र मोदी हिमाचल के प्रभारी बने तो धूमल युग का उदय हुआ। जिसकी चकाचौंध में शांता कुमार से लेकर जगत प्रकाश नड्डा तक हाशिए पर चले गए थे। लेकिन फिर वक्त ने करवट ली, इसे कुछ राजनीतिक पंडितों ने सियासी षड्यंत्र का नाम भी दिया। हाल ही में हुए उत्तराखंड चुनावों ने कुछ हद तक इस बात को सही भी साबित कर दिया। खैर आज वक्त फिर बदला है और प्रदेश की जनता धूमल की सुजानपुर में मिली हार का बदला लेने के लिये तैयार है। हालांकि धूमल ने इस हार को सहर्ष स्वीकार किया था। लेकिन अब ये बात साफ है कि धूमल की राजनीतिक सक्रियता और जनता में लोकप्रियता विरोधी खेमे पर भारी पड़ने वाली है।

धूमल को विरासत में नहीं मिली राजनीति

आपको ये भी बताना जरूरी है कि धूमल को राजनीति विरासत में नहीं मिली। वह पंजाब के जालंधर में दोआबा कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे।तो ये कभी नहीं सोचा होगा कि राजनीति में आएंगे। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सपंर्क में आने के बाद हमीरपुर के गांवों में संगठन का झंडा उठाने लगे। ठाकुर जगदेव चंद के निधन के बाद भाजपा में मजबूत राजपूत चेहरा बने तो 1998 में भाजपा की सरकार बनने पर पहली बार मुख्यमंत्री बने।हालांकि उस समय धूमल सांसद थे।

प्रदेश में वीरभद्र की कांग्रेस सरकार थी और केंद्र में भाजपा की सरकार बननी तय थी। ऐसे में वीरभद्र सिंह ने 6 महीने पहले ही चुनाव करवा दिये थे। भाजपा को हार का सामना करना तय था लेकिन उस समय नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रभारी थे। प्रदेश में भाजपा का मुख्यमंत्री चेहरा बनने को कोई भी तैयार नहीं था। भाजपा के नेताओं को लग रहा था कि हारने से अच्छा है कि चेहरा बनने से साफ मना कर दिया जाए।ऐसे समय में धूमल ने आगे आकर इस चुनौती को स्वीकार किया।

उस समय चुनाव से 3 दिन पूर्व धूमल के नाम की घोषणा की गई। चुनाव परिणाम में सरकार बनाने के लिए सुखराम को हिमाचल विकास कांग्रेस का सहयोग लेना पड़ा ओर धूमल पहली बार मुख्यंमत्री बने। हालांकि इस गठबंधन में भी धूमल ने भाजपा की सरकार पूरे पांच वर्ष चलाई।

संगठन की मजबूती में भी अहम योगदान

साल 2003 में भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। उस वर्ष 2007 में भाजपा सांसद सुरेश चंदेल पर संसद में सवाल पूछने को लेकर रिश्वत लेने का मामला सामने आया। देश में भाजपा बैकफुट पर आ गई थी। हमीरपुर संसदीय सीट पर चुनाव हुआ कोई भी नेता भाजपा प्रत्याशी बनने को तैयार नहीं था। उस समय धूमल ने संगठन को मजबूत करने के लिए चुनौती को स्वीकार किया। धूमल ने कांग्रेस प्रत्याशी राम लाल ठाकुर को हरा दिया था। कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि हमीरपुर की सीट जीती जा सकती थी।

तो इस तरह कई किस्से हैं जिन्होने प्रो. धूमल को मुख्यमंत्री धूमल बनाया।बरहाल आज उनके जन्मदिन पर उन्हें तमाम बड़े नेता और प्रदेश की जनता बधाई संदेश दे रही है। आप भी कमेन्ट कर उन्हें बधाई संदेश दे सकते हैं और उनसे जुड़ा कोई किस्सा हमारे साथ शेयर कर सकते हैं। जिसे हम अन्य लोगों के साथ भी जरूर सांझा करेंगें।