चैत्र नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। माना जाता है महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया और उनका कात्यायनी नाम पड़ा। माँ कात्यायनी देवी का रूप बहुत आकर्षक है, इनका शरीर सोने की तरह चमकीला है। माँ कात्यायनी की चार भुजा हैं और इनकी सवारी सिंह है।माँ कात्यायनी के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। साथ ही दूसरे हाथों में वरमुद्रा और अभयमुद्रा है।माँ कात्यायनी ने महिषासुर नाम के असुर का वध किया था। जिस कारण माँ कात्यायनी को दानवों, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है। माँ कात्यायनी को शहद से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।
मान्यता है कि जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रही हो उन्हें माँ कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए, इससे उनका विवाह जल्दी और अच्छा वर प्राप्त होने का आशीर्वाद देती हैं। माँ का ध्यान गोधुलि बेला यानि शाम के समय में करना चाहिए। इससे प्रसन्न होकर माँ कात्यायनी शत्रुओं का नाश कर रोगों से भी मुक्ति दिलाती हैं। माँ को पान और शहद से बनी चीजों का भोग लगाया जाता है।
नवरात्रि के छठे दिन सबसे पहले उठकर स्नान आदि करके माँ कत्यायनी को लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। माता को पीले रंग के पकड़ों से सजाएं। इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें। माता कात्यायनी को शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है। माँ को सुगंधित पुष्प अर्पित करने से शीघ्र विवाह के योग बनते हैं। साथ ही प्रेम संबंधी बाधाएं भी दूर होती हैं। पूजा के दौरान माता के इस मन्त्र का जप करें।
मन्त्र
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।