कोरोना काल के दौरान करीब दो वर्षों तक सूही मेले से गायब रही रौनक इस बार फिर से लौट आई है। कोरोना काल में लगाई गई बंदिशें हटने के बाद नगर परिषद चंबा की ओर से मेले को लेकर लोगों में खूब जोश है। वहीं, चंबा के लोगों खासकर महिलाओं में मेले को लेकर काफी उत्सुकता है। कोरोना काल के दौरान सूही माता मेले में महज औपचारिकताएं ही निभाई गईं। बंदिशें होने के कारण इसमें आम लोगों को भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई। लेकिन, इस बार बंदिशें हटने के बाद मेले के दौरान रस्में निभाने के साथ ही अन्य गतिविधियां भी हो रही है।
तीन दिनों तक चलने वाला यह मेला घुरैई गायन के साथ शुरू होता है। मेले का शुभारंभ राज परिवार की ओर से किया जाता है। चंबा के ऐतिहासिक अखंड चंडी पैलेस से पूजा-अर्चना के बाद माता सुनयना के प्रतीक को पालकी में रखा जाता है, जिसके बाद बैंडबाजों के साथ पालकी राजनौण की ओर बढ़ती है।
इस दौरान गद्दी समुदाय की महिलाओं द्वारा घुरैई गायन व नृत्य कर माता सुनयना को याद किया जाता है। राजनौण पहुंचने पर माता की पूजा करने के बाद कन्या पूजन किया जाता है। इसके बाद पानी के उस पनिहारे की पूजा की जाती है, जहां माता के बलिदान के बाद पानी निकला था। पनिहारे में मौजूद महिलाओं को प्रसाद बांटा जाता है तथा पालकी को सूही माता मंदिर में ले जाया जाता है, जहां तीन दिन तक माता का मेला चलता है। मेले के दौरान माता को उस मलूण गांव ले जाया जाता है, जहां माता ने चंबा को बचाने के लिए बलिदान दिया था।