मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर द्वारा 4 मार्च को प्रस्तुत किए गए बजट में एक बड़ी प्रतिबद्धता यह है कि राज्य सरकार अपनी शत-प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकता को अक्षय और हरित ऊर्जा से पूरा करने के लिए प्रयास करेगी। यदि राज्य सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने में सफल हो जाती है तो हिमाचल प्रदेश देश का पहला हरित राज्य बन जाएगा।
हिमाचल में प्रतिवर्ष लगभग 12000 मिलियन यूनिट बिजली की खपत होती है। इसमें से केवल 2000 मिलियन यूनिट ताप ऊर्जा (थर्मल पावर) और शेष हरित अथवा अक्षय ऊर्जा है। राज्य को दो कारणों से ताप विद्युत का उपयोग करना पड़ता है। राज्य ने बहुत समय पूर्व ताप विद्युत केन्द्रों के साथ विद्युत खरीद समझौता किया है। इन ताप विद्युत केन्द्रों के तहत दायित्व धीरे-धीरे कम हो जाएंगे और वर्ष 2034 तक पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे। इन दायित्वों में निर्धारित लागत और वास्तविक खपत शुल्क दोनों का भुगतान शामिल है। दूसरा कारण यह है कि राज्य चौबीसों घंटे बिजली प्रदान करने के लिए थर्मल पावर का उपयोग करता है क्योंकि इसकी लागत अक्षय ऊर्जा से कम है।
हरित राज्य बनने के लिए हिमाचल प्रदेश को इन दायित्वों और आवश्यकता से बाहर निकलना होगा। यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है और इसी की वर्तमान बजट में आकांक्षा की गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ग्लासगो में 26वें जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत पंचामृत के प्रमुख दो अमृत तत्व भारत की अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता को 50 गीगावाट तक बढ़ाने और वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा से अपनी ऊर्जा आवश्यकता की 50 प्रतिशत पूर्ति करने की प्रतिबद्धता थी।
हिमाचल प्रदेश की परिकल्पना ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ बड़ा व बेहतर करने की है। यह पूर्ण हरित राज्य के रूप में परिवर्तित होने की इबारत लिखने का प्रयास कर रहा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रदेश को अपने ताप ऊर्जा दायित्वों की आर्थिक सुरक्षा या उन्हें खरीदे जाने की आवश्यकता है। इसके लिए बड़े पैमाने पर मोल-भाव करना होगा जिसमें संभवतः जी-7 देश भी हो सकते हैं क्योंकि तभी उचित एवं न्यायसंगत मूल्य प्राप्त हो सकेगा। इसके साथ-साथ यह जलवायु वित्त का एक हिस्सा भी होगा।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर पहले ही इस मुद्दे को प्रधानमंत्री और अन्य वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों के समक्ष उठा चुके हैं। प्रदेश के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह ने विश्व बैंक के कन्ट्री डायरेक्टर एवं उपाध्यक्ष तथा नीति आयोग के उपाध्यक्ष व इसके सदस्यों के साथ चर्चा की है।
यह एक महत्वाकांक्षी परिकल्पना है। यह न केवल जलवायु परिवर्तन से लड़ने बल्कि हिमाचल प्रदेश में निर्मित प्रत्येक उत्पाद को संपोषणीय और हरित के रूप में प्रमाणित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण व साहसिक कदम है। इससे प्रदेश में निर्मित होने वाले उत्पादों का व्यापक स्तर पर मूल्यवर्द्धन होगा।